नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार के राजगीर के पास स्थित, 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा स्थापित किया गया था। यह केवल एक विश्वविद्यालय नहीं बल्कि विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था जहाँ 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे।
प्रमुख विशेषताएं:
- विषय: बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, गणित, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद
- विद्यार्थी: भारत, चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया आदि देशों से
- पुस्तकालय: “धर्मगुंज”, “रत्नसागर”, और “रत्नरंजक”

नालंदा में पढ़ाए जाने वाले प्रमुख विषय
- बौद्ध दर्शन (Buddhist Philosophy)
- व्याकरण (Grammar)
- तर्कशास्त्र (Logic)
- आयुर्वेद (Ayurveda)
- गणित एवं खगोलशास्त्र (Mathematics and Astronomy)
नालंदा का विनाश
12वीं शताब्दी में, मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जलाकर नष्ट कर दिया। 9 महीनों तक यहाँ की पुस्तकें जलती रहीं। यह प्राचीन भारत के शैक्षणिक और सांस्कृतिक पतन का प्रतीक बन गया।
नालंदा का पुनर्निर्माण और वर्तमान स्थिति
2014 में भारत सरकार ने Nalanda University Act पारित कर एक नए विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग से विकसित हुआ है और पर्यावरण के अनुकूल, आधुनिक शिक्षा का केंद्र बन गया है।
📍आधिकारिक वेबसाइट
📌 Google Map में देखें
नालंदा विश्वविद्यालय का पर्यटन महत्त्व
नालंदा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जिसे UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया गया है। यह जगह इतिहास प्रेमियों और बौद्ध अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कैसे पहुँचें:
- निकटतम रेलवे स्टेशन: बिहार शरीफ (12 किमी)
- हवाई अड्डा: गया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (85 किमी)
- सड़क मार्ग: पटना से 90 किमी
निष्कर्ष
नालंदा विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक केंद्र नहीं बल्कि प्राचीन भारत की वैश्विक नेतृत्व क्षमता का प्रतीक था। इसके पुनर्निर्माण से भारत की सांस्कृतिक धरोहर फिर से जीवंत हो रही है। यह लेख हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान नहीं, बल्कि संस्कार और वैश्विक सहयोग भी है।