📜 जन्म और प्रारंभिक जीवन
- पूरा नाम: विश्वंभर मिश्रा (बचपन में ‘निमाई’ के नाम से प्रसिद्ध)
- जन्म: 18 फरवरी 1486, नवद्वीप (नादिया जिला, पश्चिम बंगाल)
- माता-पिता: श्री जगन्नाथ मिश्रा और श्रीमती शचिदेवी
- गौड़ीय वैष्णव परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- उन्हें ‘गौरांग’ कहा जाता है क्योंकि उनका रंग अत्यंत सुनहरा था।
🧠 विद्वता और धर्म में रुचि
- बाल्यकाल से ही अत्यंत बुद्धिमान, तर्कशील और वेदशास्त्र में पारंगत थे।
- केवल 16 वर्ष की आयु में उन्होंने नवद्वीप में एक तोला (संस्कृत पाठशाला) स्थापित की।
- पहले वे केवल तर्क और ज्ञान में लिप्त थे, लेकिन दक्षिण भारत यात्रा के दौरान उन्होंने भक्ति को ही परम साधन माना।

✨ संन्यास ग्रहण और प्रचार कार्य
- 1510 ई. में उन्होंने संन्यास लिया और ‘श्री कृष्ण चैतन्य’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
- उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा की:
- दक्षिण भारत
- जगन्नाथ पुरी
- वृंदावन
- मथुरा
- काशी
- उनका मुख्य उद्देश्य था — नाम संकीर्तन द्वारा भक्ति योग का प्रचार।
🕉️ प्रमुख शिक्षाएं
- हरे कृष्ण महामंत्र का जप: हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे - अहंकार का त्याग और विनम्रता:
- “तृणादपि सुनीचेन, तरोरपि सहिष्णुना” — घास से भी विनम्र और पेड़ से भी सहनशील बनो।
- भगवद् नाम की महिमा:
- केवल श्रीनाम का जाप ही इस कलियुग में मोक्ष का साधन है।
- समरसता और प्रेम:
- जात-पात, धर्म, लिंग, भाषा के भेद से ऊपर उठकर सबको प्रेम के माध्यम से ईश्वर से जोड़ना।
📖 ग्रंथ और साहित्य
- Chaitanya Mahaprabhu ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, लेकिन उनके जीवन और शिक्षाओं पर आधारित प्रसिद्ध ग्रंथ हैं:
- चैतन्य चरितामृत – कृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित
- चैतन्य भागवत – वृंदावन दास ठाकुर द्वारा रचित
- शिक्षाष्टक – महाप्रभु के 8 श्लोकों का संग्रह
🌍 प्रभाव और विरासत
- गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की
- उनके शिष्य रूप, सनातन और जीव गोस्वामी ने वृंदावन में भक्ति साहित्य की नींव रखी
- ISKCON (Hare Krishna Movement) भी उनके सिद्धांतों पर आधारित है
- वे केवल एक संत नहीं, बल्कि अवतारी पुरुष माने जाते हैं — राधा और कृष्ण का संयुक्त अवतार
🧘♂️ अंतिम जीवन
- अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष उन्होंने जगन्नाथ पुरी में रहकर भगवान के नाम का संकीर्तन करते हुए व्यतीत किए
- 24 जून 1534 को उन्होंने लीला-समापन किया
🔚 निष्कर्ष
श्री Chaitanya Mahaprabhu केवल भक्ति आंदोलन के संस्थापक नहीं थे, बल्कि वे आध्यात्मिक प्रेम और नाम-संकीर्तन के मूर्त स्वरूप थे। उनकी शिक्षाएं आज भी करोड़ों लोगों को शुद्ध भक्ति की ओर प्रेरित करती हैं।
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