1. परंपरागत चयन प्रक्रिया क्या है?
- पुनर्जन्म की मान्यता – दलाई लामा 14वें के निधन के बाद उनके आध्यात्मिक चिन्हों के आधार पर संतों की टोली पुनर्जन्म की पहचान करती है apnews.comtimesofindia.indiatimes.comtheweek.com+1timesofindia.indiatimes.com+1।
- जरूरी धार्मिक संकेत और परीक्षण – बच्चे की पहचान स्वप्न, अधिनायक चिन्ह, पिछली यादों, डुबोने और चयन की रस्में—सभी परम्परा अनुसार होते हैं ।
- गदेन फोद्रांग ट्रस्ट – 14वें दलाई लामा द्वारा स्थापित आध्यात्मिक संस्था ही अगली पहचान करेगी indianexpress.com+11theweek.com+11timesofindia.indiatimes.com+11।

2. भारत और चीन के बीच गतिद्वंद्व
- भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि केवल दलाई लामा या उनकी संस्था उत्तराधिकारी निर्धारित करेगी; किसी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं ।
- चीन ने परंपरागत अधिकार का दावा करते हुए कहा कि गोल्डन अर्न जैसे प्रथाओं का पालन जरूरी है ।
- राजनीतिक विवाद गहराता दिख रहा है, दोनों देशों के मध्य गतिरोध संभव है, लेकिन भारत ने धर्म की स्वतंत्रता की बात रखी है ।
3. भारत में क्यों रखें ध्यान?
- दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासित हैं और उनका मुख्यालय धर्मशाला (McLeod Ganj) में है।
- भारत ने उन्हें आश्रय दिया और भारत को अगली पंथ की स्थिति (जैसे मंदिर, ट्रस्ट) बनाए रखने का अधिकार प्राप्त है aljazeera.com+5scoutripper.com+5alamy.com+5।
- चीन-भारत के बीच टिकाऊ धार्मिक सहिष्णुता और सीमा नीतियों के लिहाज से यह चयन भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।
4. संभावित चुनौतियाँ
- राजनीतिक विभाजन – हो सकता है दो अलग-अलग दलाई लामा बनें—एक चीन-नियंत्रित और दूसरा निर्वासित टीब्बती समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त।
- चीन की प्रतिक्रियाएँ – चीन को यह कदम स्वीकार्य नहीं, जिसमें वे धार्मिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर मजबूत रुख अपना सकते हैं ।
- नई पहचान प्रक्रिया – उत्पादिगत चयन के बजाय पूरी तरह से पारंपरिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया अपेक्षित है।
निष्कर्ष (Conclusion)
- अगला दलाई लामा होगा – यह सुनिश्चित किया गया है कि यह परंपरा जारी रहेगी ।
- भारत एक आधार, आश्रय और नीति के स्थायित्व के रूप में तैयार है।
- आगामी समय में यह देखना होगा कि कौन-सी पहचान होगी—एक धर्मान्तरित, शांतिपूर्ण और पारंपरिक मार्ग से, या कोई राजनीतिक विभाजन उभरकर आएगा।