लोकसभा इलेक्शन मे जानिए नोटा का रिकार्ड कहा से टूटा

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इंदौर में नोटा ने इतिहास रचा, कांग्रेस की मुहिम ने चित्रित की सीट, जानिए कैसे उठा ‘खेला’।

इंदौर ने विश्वास की नई कहानी लिख दी है, जब मतदाताओं का साहस और निष्ठा ने नोटा पर बटन दबाकर नया इतिहास बना दिया है। इस इतिहास के पन्नों में, इंदौर के लोगों ने 90 हजार से अधिक वोटों के साथ नोटा को उत्साहजनक समर्थन दिया है। यह साबित करता है कि जनता की आवाज को सराहनीय और लोकतंत्र की ताकत को नम्रतापूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए।

इस उत्साहजनक माहौल में, भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी की भारी बढ़त ने नए रिकॉर्ड को गढ़ा है। इस प्रतिष्ठान्वित सीट पर उनकी भारी जीत ने उनके स्थायित्व को और भी मजबूती दी है। 2019 के चुनाव में भी विजय प्राप्त करने वाले लालवानी ने फिर से लोकसभा के क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखा है।

इंदौर के मतदाताओं ने ‘नोटा’ को अपनी आवाज़ बनाकर एक नया इतिहास रचा है। इस बेहद महत्वपूर्ण चुनाव में, 90 हजार से अधिक वोट ‘नोटा’ को प्राप्त हुए हैं, जो एक सशक्त लोकतंत्र की प्रतीक है।

इस साथ, इंदौर लोकसभा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी ने विजय के दरवाजे खोले हैं। उनकी भारी बढ़त ने उन्हें चुनावी मैदान में सबसे प्रभावशाली बना दिया है। जिस टक्कर की उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी से ली, उसमें उन्होंने प्रदर्शन दिया जो उन्हें जीत की ओर बढ़ने में मदद की।

इस महासंग्राम में, जहां थी कांग्रेस की मुहिम, वहां भाजपा के साथ शामिल होने से लालवानी के लिए राह साफ हो गई। उनकी योगदान और विजय अब इंदौर के नाम का गर्व बनेगी।

नोटा क्या है

दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में नोटा का प्रस्ताव लागू किया गया था, जिसने चुनावी प्रक्रिया में एक नया दिमाग और दायरा खोला। इस अद्वितीय विकल्प के जरिए, मतदाताओं को अपनी नाराजगी का एक स्पष्ट संकेत देने का मौका मिला, जब उन्हें किसी भी उम्मीदवार से संतुष्टि नहीं होती थी, लेकिन वे अपना वोट जरूर देना चाहते थे।

नोटा के माध्यम से मतदाताओं ने अपनी आवाज़ को बुलंद किया, जिसने दलों को ध्यान देने के लिए मजबूर किया। यह अद्वितीय प्रयास देशवासियों को अपने नेतृत्व के प्रति जागरूक किया और लोकतंत्र के मूल तत्वों को मजबूत किया।

इस उपलब्धि के साथ, नोटा के प्रभाव की गहरी छाप बनी है। यह चुनावी प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्थापित हो चुका है, जो नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग और सशक्त बनाता है

इंदौर की सीट पर एक नया चुनावी रंगमंच सामने आया है, जहां नोटा ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। शंकर लालवानी की विजय के बाद, नोटा ने वास्तविकता को अपनी चपेट में ले लिया है।

निर्वाचन आयोग ने वोटों के अंतर पर नोटा को नहीं, बल्कि तीसरे नंबर की पार्टी को महत्व दिया है। इससे ज्ञात होता है कि जनता की भावनाओं और विचारों को समझना अत्यंत आवश्यक है।

इस महत्वपूर्ण चुनाव में, बहुजन समाज पार्टी के संजय सोलंकी ने तीसरे स्थान पर अपनी भूमिका बनाई है। बीजेपी ने इस इतिहासी चुनाव में अपना 35 साल का जीत का रिकॉर्ड कायम रखा है, जो उनके दृढ़ और साहसिक नेतृत्व को प्रतिष्ठा और सम्मान से भरा है।

कांग्रेस का प्रचार आया काम

इंदौर की चुनावी क्षेत्र में, जहां निर्वाचन की उत्साहजनक जंग हो रही थी, वहां ‘नोटा’ ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है, जब शंकर लालवानी की जीत के बाद। नोटा ने असमंजस का परदा हटाया और वास्तविकता की चित्रण में योगदान दिया है।

निर्वाचन आयोग ने मतों के अंतर पर नोटा को महत्व नहीं, बल्कि तीसरे स्थान पर आने वाली पार्टी को महत्व दिया है। यह उसे समझने की जरूरत को दर्शाता है, जनता के भावनाओं और विचारों की।

इस महत्वपूर्ण चुनाव में, बहुजन समाज पार्टी के संजय सोलंकी ने तीसरे स्थान पर अपनी पहचान बनाई है, जिसने राजनीतिक मंच को विविधता और गहराई से भर दिया है। वहीं, भाजपा ने अपने 35 साल के जीत के सिलसिले को गर्व से निभाया है, जो अटल नेतृत्व और दृढ़ संकल्प का प्रतिबिम्ब है।

इंदौर लोकसभा चुनाव 2024 में बने रिकॉर्ड

इंदौर सिट पर NOTA को 2 लाख 18 हजार 674 वोट मिले जो एक नया रिकार्ड है इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाब मे गोपालगंज बिहार मे Nota को 51 हजार 660 वोट मिले थे .

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