📍 स्तंभ का स्थान और महत्व
दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित मेहरौली का Iron Pillar प्राचीन भारत की धातु विज्ञान (metallurgy) का अद्वितीय उदाहरण है। यह स्तंभ केवल एक धातु संरचना नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा, धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक उत्कृष्टता का प्रतीक है।
Contents

🏗️ निर्माण काल और शासक
- यह स्तंभ 4वीं–5वीं शताब्दी ईस्वी के बीच बनाया गया था।
- इसका निर्माण गुप्त वंश के सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के शासनकाल में हुआ था।
- मूल रूप से यह स्तंभ भगवान विष्णु को समर्पित ध्वजस्तंभ (विष्णुध्वज) के रूप में खड़ा किया गया था।
🧾 शिलालेख और भाषा
- स्तंभ पर एक छह-पंक्तियों का संस्कृत शिलालेख अंकित है।
- यह शिलालेख गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।
- इसमें “राजा चंद्र” (चंद्रगुप्त द्वितीय) के युद्धों, धार्मिक श्रद्धा और गुणों की प्रशंसा की गई है।
🗺️ Iron Pillar की उत्पत्ति और स्थानांतरण
- विद्वानों के अनुसार, यह स्तंभ मूल रूप से उदयगिरि (मध्य प्रदेश) में स्थित था।
- बाद में इसे अनंगपाल तोमर द्वारा दिल्ली लाया गया और लालकोट किले में स्थापित किया गया।
- 13वीं शताब्दी में इलबरी सुल्तान इल्तुतमिश ने इसे कुतुब परिसर में स्थापित करवाया।
📏 संरचना और विशेषताएं
- ऊंचाई: लगभग 7.21 मीटर (जिसमें 1 मीटर जमीन के नीचे है)
- व्यास: लगभग 41 सेंटीमीटर
- वजन: लगभग 6 टन
- धातु संरचना: 98% से अधिक शुद्ध लोहे से निर्मित
- शीर्ष भाग: पहले यहां भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ स्थापित था।
🧪 जंग-प्रतिरोधक विशेषता
मेहरौली लौह स्तंभ का सबसे बड़ा रहस्य है कि यह 1600 वर्षों से अधिक समय से खुले वातावरण में रहने के बावजूद जंग नहीं लगा।
इसके कारण:
- इसमें फास्फोरस की उच्च मात्रा (0.25%) है।
- पारंपरिक आग-स्मेल्टिंग तकनीक से यह स्तंभ तैयार किया गया था।
- लोहे की सतह पर एक प्राकृतिक ऑक्साइड की परत बनती है, जो उसे आगे जंग लगने से रोकती है।
- इसमें चूना (lime) का अभाव भी इसका कारण माना जाता है।
📚 सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व
- यह स्तंभ गुप्तकालीन धातुकला, स्थापत्य और धार्मिक कला का उत्तम उदाहरण है।
- यह दर्शाता है कि प्राचीन भारत में उच्च तकनीकी ज्ञान, विज्ञान और कला का गहन समावेश था।
- यह स्तंभ आज भी भारतीय विज्ञान और इतिहास प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
🧭 रोचक तथ्य
- कुछ लोगों का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति स्तंभ को पीछे से हाथ मिलाकर घेर ले, तो उसकी मनोकामना पूरी होती है (हालांकि आज यह प्रयास प्रतिबंधित है)।
- स्तंभ पर एक निशान है, जिसे तोप के गोले का प्रभाव बताया जाता है—संभवत: नादिरशाह या किसी और हमले के दौरान हुआ।
🔚 निष्कर्ष
मेहरौली का लौह स्तंभ न केवल भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है, बल्कि यह धातुकला, धार्मिक विश्वास और स्थापत्य के उत्कृष्ट संयोजन का भी उदाहरण है। इसकी आज की स्थिति आधुनिक विज्ञान को भी चुनौती देती है और यह स्पष्ट करता है कि प्राचीन भारत तकनीकी दृष्टि से अत्यंत उन्नत था।