परिचय
विडंबना यह है कि अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित किया, तब तक कोई देश अभी तक आधिकारिक रूप से उसे मान्यता नहीं दे पाया था। लेकिन 3–4 जुलाई 2025 को रूस ने यह ऐतिहासिक कदम उठाया, तालिबान सरकार को पहला आधिकारिक कूटनीतिक दर्जा देते हुए।

प्रमुख बिंदु
- पहली मान्यता
रूस ने अफगानिस्तान में तालिबान के राजनयिकों की स्वीकृति दी — यह अब तक का पहला ऐसा कदम है । - आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग
रूस ने ऊर्जा, कृषि, परिवहन और आधारभूत संरचना में सामरिक साझेदारी की संभावना जताई - आतंकवाद एवं ड्रग नियंत्रण
साझा हितों में आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी शामिल हैं – यह दोनों देशों के लिए सुरक्षा प्राथमिकताएँ हैं amu.tv+5reuters.com+5france24.com+5। - प्रतीकात्मक रणनीति
विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम चमक‑दमक वाला हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रणनीतिक लाभ सीमित हो सकते हैं । - मानवाधिकारियों में विवाद
पश्चिम ने विशेष रूप से महिलाओं पर तालिबान की कठोर नीतियों को लेकर चिंता जताई है। रूस इसे स्वीकार कर रहा है, जबकि अन्य अभी भी संकोच कर रहे।
विश्लेषण
- भू‑राजनैतिक चाल:
तालिबान को मान्यता देकर रूस ने चीन जैसी अन्य शक्तियों को संकेत भेजा कि यह अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय राजनैतिक मंच की ओर अग्रसर हो रहा है । - ब्रिक देशों पर असर:
जैसे चीन और पाकिस्तान ने दूतावास संबंधों को पुनर्स्थापित किया, वैसे ही अन्य मध्य एशियाई पड़ोसी भी इस कदम से प्रभावित हो सकते हैं themoscowtimes.com+15aljazeera.com+15nypost.com+15। - अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
संयुक्त राष्ट्र ने इसे तालिबान के “de‑facto” सरकार के रूप में मानने से परहेज किया है। पश्चिमी देशों ने इस मान्यता को चुनौतीपूर्ण समझा है क्योंकि महिलाऒं के अधिकारों में गिरावट जारी है

आगे का रास्ता
- अफगान सरकारी कोष रिलीज़: पश्चिम पर दबाव बढ़ सकता है कि तालिबान को भूखमरी से बचाने हेतु आर्थिक सहायता दी जाए।
- अन्य देशों की मान्यता: मध्य एशियाई देश, ईरान या चीन अगली कतार में हो सकते हैं।
- तनाव रोका जाए: तालिबान पर महिला अधिकारों पर लगाम ढीली होने तक वैश्विक स्तर की आलोचना बनी रहेगी।
- रूस–तालिबान प्रतिक्रिया: रणनीतिक यात्राएँ, समझौते, और साझा सैन्य अभ्यास संभावित।
निष्कर्ष
रूस की यह पहल ‘तालिबान को मान्यता’ का ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक क्षण है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया दर्जा देता है। आगे आर्थिक सहयोग और समन्वय की दिशा में कदम बढ़ेंगे, लेकिन तालिबान की मानवाधिकार नीति में बदलाव के बिना पश्चिमी दुनिया की मान्यता मुश्किल दिखती है।