📅 हाल की शांति वार्ता का सारांश
- जुलाई 2025 में तुर्की के इस्तांबुल में Russia–Ukraine के प्रतिनिधियों के बीच तीसरी बैठक हुई, जो लगभग 40 मिनट चली।
- इस बैठक में कैदियों की अदला-बदली पर सहमति बनी, लेकिन युद्धविराम या स्थायी शांति समझौते पर कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
- यह वार्ता अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के बीच आयोजित की गई थी।

🔍 प्रमुख मुद्दे और मतभेद
- यूक्रेन चाहता है कि रूस उसके क्षेत्रीय अखंडता की पूरी तरह से मान्यता दे और भविष्य में NATO में शामिल होने के उसके अधिकार का सम्मान किया जाए।
- रूस, 2022 के इस्तांबुल ड्राफ्ट समझौते को वार्ता का आधार मानने पर ज़ोर दे रहा है जिसमें पूर्वी यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर रूस के अधिकार को मान्यता देने की बात थी।
- रूस यह भी कह रहा है कि राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की सीधी बैठक तभी संभव है जब शांति समझौते के अंतिम मसौदे पर सहमति बन जाए।
🎯 जमीन पर स्थिति
- वार्ता के बाद भी दोनों देशों ने एक-दूसरे के इलाकों में ड्रोन हमले और मिसाइल हमले जारी रखे हैं।
- खार्किव, ओडेसा और सुमी जैसे इलाकों में नागरिकों को भी नुकसान हुआ है, जिससे शांति वार्ता के प्रभाव पर सवाल उठने लगे हैं।
🌐 अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप
- जुलाई 2025 में लंदन में आयोजित सम्मेलन में 30 से अधिक देशों ने भाग लिया और युद्धविराम के बाद शांति बनाए रखने के लिए “Coalition of the Willing” नामक बल गठित करने पर सहमति जताई।
- यूरोपीय संघ और अमेरिका ने यूक्रेन को सैन्य और वित्तीय सहायता जारी रखने का वादा किया है ताकि वह रूस के खिलाफ अपनी रक्षा कर सके।
🤝 नेतृत्व स्तर की बैठक
- यूक्रेन चाहता है कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और पुतिन के बीच सीधी बातचीत हो, ताकि गतिरोध को तोड़ा जा सके।
- रूस का कहना है कि पुतिन की भागीदारी केवल तब होगी जब शांति समझौते के सभी बिंदुओं पर पहले से सहमति बन चुकी हो।
📌 सारांश तालिका
विषय | वर्तमान स्थिति |
---|---|
शांति वार्ता | 3 राउंड संपन्न, कोई ठोस समझौता नहीं |
नेतृत्व बैठक | रूस अंतिम चरण में ही पुतिन की भागीदारी को तैयार |
जमीनी संघर्ष | ड्रोन व मिसाइल हमले जारी |
अंतरराष्ट्रीय भूमिका | यूरोप-अमेरिका का समर्थन यूक्रेन के पक्ष में जारी |
🔚 निष्कर्ष
2025 की Russia–Ukraine शांति वार्ता अब भी एक अनिश्चित रास्ते पर है।
हालांकि वार्ता की पहल हो चुकी है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच गहरे मतभेद, राजनीतिक असहमति और जमीनी हमले शांति प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं।
आने वाले समय में, यदि कोई तटस्थ मंच या तीसरी शक्ति हस्तक्षेप करती है, तभी संभवतः स्थायी समाधान की दिशा में प्रगति हो सकती है।
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