शिबू सोरेन का झारखंड की राजनीति में क्या योगदान रहा? जानिए उनका पूरा जीवन संघर्ष, आदिवासी आंदोलन, मुख्यमंत्री कार्यकाल और राजनीतिक विरासत
🌿 परिचय
झारखंड की राजनीति में अगर किसी एक नेता ने सबसे अधिक प्रभाव डाला है, तो वह हैं Shibu Soren, जिन्हें प्यार से लोग “दिशोम गुरु” कहते हैं। आदिवासी अधिकारों की लड़ाई, राज्य निर्माण आंदोलन और समाज के वंचित तबकों की आवाज़ बनकर उन्होंने भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक स्थान बनाया।
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शिबू सोरेन का झारखंड की राजनीति में क्या योगदान रहा? जानिए उनका पूरा जीवन संघर्ष, आदिवासी आंदोलन, मुख्यमंत्री कार्यकाल और राजनीतिक विरासत🌿 परिचय🪓 प्रारंभिक जीवन और संघर्ष🧭 झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना📣 मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश🏛️ सांसद, केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका🛡️ आदिवासी अधिकारों की रक्षा🤝 सामाजिक समरसता और जननेता के रूप में📉 विवाद और आलोचना🏁 निधन और राजनीतिक विरासत🧾 निष्कर्ष

🪓 प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
- शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में हुआ था।
- किशोरावस्था में ही उनके पिता की हत्या महाजनों द्वारा कर दी गई, जिसने उन्हें अन्याय के खिलाफ खड़ा कर दिया।
- उन्होंने “धान काटो आंदोलन” के ज़रिये ग्रामीण आदिवासियों को शोषण के खिलाफ संगठित करना शुरू किया।
- उन्होंने Santhal Navyuvak Sangh की स्थापना की और कई स्थानीय आंदोलनों में हिस्सा लिया।
🧭 झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
- वर्ष 1973 में उन्होंने बिनोद बिहारी महतो और ए. के. रॉय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की।
- इस संगठन ने बिहार से अलग झारखंड राज्य की माँग को एक व्यापक जन-आंदोलन में बदल दिया।
- उन्होंने जंगलों में रहते हुए भूमिगत आंदोलन को नेतृत्व दिया और आदिवासी अस्मिता को नई पहचान दी।
📣 मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश
- लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने टुंडी थाने में आत्मसमर्पण कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से आंदोलन को आगे बढ़ाया।
- उन्होंने झारखंड आंदोलन को संसद और सरकार तक पहुँचाया और उसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
🏛️ सांसद, केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका
- 1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और डुमका से कई बार सांसद रहे।
- वे तीन बार केंद्रीय कोयला मंत्री बने और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण की वकालत की।
- वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने:
- पहली बार 2005 में (10 दिन)
- दूसरी बार 2008–09
- तीसरी बार 2009–10
🛡️ आदिवासी अधिकारों की रक्षा
- उन्होंने झारखंड को परिसीमन से मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाया।
- उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों के लिए अलग पहचान, स्वशासन और विशेष विकास योजनाओं की माँग की।
- शिक्षा, रोज़गार, वन अधिकार और जमीन सुरक्षा जैसे मुद्दों पर उन्होंने नीतिगत स्तर पर योगदान दिया।
🤝 सामाजिक समरसता और जननेता के रूप में
- शिबू सोरेन ने आदिवासी समाज के अलावा अन्य पिछड़े और वंचित वर्गों को भी राजनीति में जगह दी।
- उनकी राजनीति किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रही बल्कि उन्होंने झारखंड के समग्र विकास की बात की।
- उन्हें झारखंड का “नेल्सन मंडेला” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा संघर्ष और जन-आंदोलन को समर्पित किया।
📉 विवाद और आलोचना
- 1994 में उनके सचिव की हत्या के मामले में उन्हें कुछ समय के लिए इस्तीफा देना पड़ा था। हालाँकि बाद में वे इस मामले से बरी हुए।
- कुछ राजनीतिक गठबंधनों को लेकर उनकी आलोचना भी हुई, लेकिन उनकी छवि एक जननायक की बनी रही।
🏁 निधन और राजनीतिक विरासत
- 4 अगस्त 2025 को उनका निधन हो गया।
- उनकी मृत्यु के साथ झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हुआ।
- उनके पुत्र हेमंत सोरेन झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं और JMM की बागडोर संभाल रहे हैं।
- उनकी विचारधारा और आंदोलनकारी शैली आज भी राज्य की राजनीति को दिशा दे रही है।
🧾 निष्कर्ष
शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उन्होंने झारखंड की आत्मा को एक नाम, पहचान और सम्मान दिलाया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और नेतृत्व का प्रतीक है। उनकी राजनीतिक यात्रा से आज की पीढ़ी को सिखने को बहुत कुछ मिलता है—विशेषकर यह कि समाज परिवर्तन के लिए संकल्प और सेवा दोनों की ज़रूरत होती है।